आमेर

आमेर जयपुर नगर सीमा मे ही स्थित उपनगर है ,इसे मीणा राजा आलन सिंह ने बसाया था,कम से कम ९६७ ईस्वीसे यह नगर मौजूद रहा है ,इसे १०३७ ईस्वी मे राजपूत जाति के कच्छावा कुल ने जीत लिया था। आमेर नगरी औरवहाँ के मंदिर तथा किले राजपूती कला का अद्वितीय उदाहरण है। यहाँ का प्रसिद्ध दुर्ग आज भी ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माताओं को शूटिंग के लिए आमंत्रित करता है। मुख्य द्वार गणेश पोल कहलाता है, जिसकी नक्काशी अत्यन्त आकर्षक है। यहाँ की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनाए गए थे और कहते हैं कि उन महान कारीगरों की कला से मुगल बादशाह जहांगीर इतना नाराज़ हो गया कि उसने इन चित्रों पर प्लास्टर करवा दिया। ये चित्र धीरे-धीरे प्लास्टर उखड़ने से अब दिखाई देने लगे हैं। आमेर में ही है चालीस खम्बों वाला वह शीश महल, जहाँ माचिस की तीली जलाने पर सारे महल में दीपावलियाँ आलोकित हो उठती है। हाथी की सवारी यहाँ के विशेष आकर्षण है, जो देशी सैलानियों से अधिक विदेशी पर्यटकों के लिए कौतूहल और आनंद का विषय है। कुछ लोगों को कहना है कि अम्बकेश्वर भगवान शिव के नाम पर यह नगर "आमेर" बना, परन्तु अधिकांश लोग और तार्किक अर्थ अयोध्या के राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं। कहते हैं भक्त अम्बरीश ने दीन-दुखियों के लिए राज्य के भरे हुए कोठार और गोदाम खोल रखे थे। सब तरफ़ सुख और शांति थी परन्तु राज्य के कोठार दीन-दुखियों के लिए खाली होते रहे। भक्त अम्बरीश से जब उनके पिता ने पूछताछ की तो अम्बरीश ने सिर झुकाकर उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के गोदाम है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। भक्त अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य करने के लिए आरोपी ठहराया गया और जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा अंकित किया जाने लगा तो लोग और कर्मचारी यह देखकर दंग रह गए कि कल तक जो गोदाम और कोठार खाली पड़े थे, वहाँ अचानक रात भर में माल कैसे भर गया।
देवी मंदिर
आम्बेर देवी के मंदिर के कारण देश भर में विख्यात है।
शीतला-माता का प्रसिद्ध यह देव-स्थल भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने, देवी चमत्कारों के
कारण श्रद्धा का केन्द्र है। शीतला-माता की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है और शाम को
यहाँ धूपबत्तियों की सुगंध में जब आरती होती है तो भक्तजन किसी अलौकिक शक्ति से
भक्त-गण प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। देवी की आरती और आह्वान से जैसे मंदिर का
वातावरण एकदम शक्ति से भर जाता है। रोमांच हो आता है, रोंगटे खड़े हो जाते
हैं और एक अजीब सी सिहरन सारे शरीर में दौड़ जाती है। पूरा माहौल चमत्कारी हो जाता
है। निकट में ही वहाँ जगत शिरोमणि का वैष्णव मंदिर है, जिसका तोरण सफ़ेद
संगमरमर का बना है और उसके दोनों ओर हाथी की विशाल प्रतिमाएँ हैं
शीश
महल

आमेर जयपुर नगर सीमा मे ही स्थित उपनगर है ,इसे मीणा राजा आलन सिंह ने बसाया था,कम से कम ९६७ ईस्वीसे यह नगर मौजूद रहा है ,इसे १०३७ ईस्वी मे राजपूत जाति के कच्छावा कुल ने जीत लिया था। आमेर नगरी औरवहाँ के मंदिर तथा किले राजपूती कला का अद्वितीय उदाहरण है। यहाँ का प्रसिद्ध दुर्ग आज भी ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माताओं को शूटिंग के लिए आमंत्रित करता है। मुख्य द्वार गणेश पोल कहलाता है, जिसकी नक्काशी अत्यन्त आकर्षक है। यहाँ की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनाए गए थे और कहते हैं कि उन महान कारीगरों की कला से मुगल बादशाह जहांगीर इतना नाराज़ हो गया कि उसने इन चित्रों पर प्लास्टर करवा दिया। ये चित्र धीरे-धीरे प्लास्टर उखड़ने से अब दिखाई देने लगे हैं। आमेर में ही है चालीस खम्बों वाला वह शीश महल, जहाँ माचिस की तीली जलाने पर सारे महल में दीपावलियाँ आलोकित हो उठती है। हाथी की सवारी यहाँ के विशेष आकर्षण है, जो देशी सैलानियों से अधिक विदेशी पर्यटकों के लिए कौतूहल और आनंद का विषय है। कुछ लोगों को कहना है कि अम्बकेश्वर भगवान शिव के नाम पर यह नगर "आमेर" बना, परन्तु अधिकांश लोग और तार्किक अर्थ अयोध्या के राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं। कहते हैं भक्त अम्बरीश ने दीन-दुखियों के लिए राज्य के भरे हुए कोठार और गोदाम खोल रखे थे। सब तरफ़ सुख और शांति थी परन्तु राज्य के कोठार दीन-दुखियों के लिए खाली होते रहे। भक्त अम्बरीश से जब उनके पिता ने पूछताछ की तो अम्बरीश ने सिर झुकाकर उत्तर दिया कि ये गोदाम भगवान के भक्तों के गोदाम है और उनके लिए सदैव खुले रहने चाहिए। भक्त अम्बरीश को राज्य के हितों के विरुद्ध कार्य करने के लिए आरोपी ठहराया गया और जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा अंकित किया जाने लगा तो लोग और कर्मचारी यह देखकर दंग रह गए कि कल तक जो गोदाम और कोठार खाली पड़े थे, वहाँ अचानक रात भर में माल कैसे भर गया।
भक्त अम्बरीश ने इसे ईश्वर की कृपा कहा।
चमत्कार था यह भक्त अम्बरीश का और उनकी भक्ति का। राजा नतमस्तक हो गया। उसी वक्त
अम्बरीश ने अपनी भक्ति और आराधना के लिए अरावली पहाड़ी पर इस स्थान को चुना, उनके नाम
से कालांतर में अपभ्रंश होता हुआ अम्बरीश से "आमेर" या
"आम्बेर" बन गया।
देवी मंदिर
आम्बेर देवी के मंदिर के कारण देश भर में विख्यात है।
शीतला-माता का प्रसिद्ध यह देव-स्थल भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने, देवी चमत्कारों के
कारण श्रद्धा का केन्द्र है। शीतला-माता की मूर्ति अत्यंत मनोहारी है और शाम को
यहाँ धूपबत्तियों की सुगंध में जब आरती होती है तो भक्तजन किसी अलौकिक शक्ति से
भक्त-गण प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। देवी की आरती और आह्वान से जैसे मंदिर का
वातावरण एकदम शक्ति से भर जाता है। रोमांच हो आता है, रोंगटे खड़े हो जाते
हैं और एक अजीब सी सिहरन सारे शरीर में दौड़ जाती है। पूरा माहौल चमत्कारी हो जाता
है। निकट में ही वहाँ जगत शिरोमणि का वैष्णव मंदिर है, जिसका तोरण सफ़ेद
संगमरमर का बना है और उसके दोनों ओर हाथी की विशाल प्रतिमाएँ हैं
शीश
महल
इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों और छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं
कि केवल कुछ मोमबत्तियाँ जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से
जगमग कर देता है।
भक्ति और
इतिहास के पावन संगम के रूप में स्थित आमेर नगरी अपने विशाल प्रासादों व उन पर की
गई स्थापत्य कला की आकर्षक पच्चीकारी के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र
बना हुआ है। पत्थर के मेहराबों की काट-छाँट देखते ही बनती है। यहाँ का विशेष
आकर्षण है डोली महल, जिसका आकार उस डोली (पालकी) की तरह है, जिनमें
प्राचीन काल में राजपूती महिलाएँ आया-जाया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश
द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहाँ
राजे-महाराजे अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे।
कहते हैं महाराजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब राजा मान सिंह युद्ध से वापस
लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस रानी को सबसे पहले मिलने जाएँ। इसलिए
जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में इधर-उधर घूमते थे
और जो रानी सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता
था।आम्बेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों
और छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ मोमबत्तियाँ जलाते
ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से जगमग कर देता है। सुख महल व किले
के बाहर झील बाग का स्थापत्य अपूर्व है।
यह कहावत भी प्रसिद्ध है कि अकबर और मानसिंह
के बीच एक गुप्त समझौता यह था कि किसी भी युद्ध से विजयी होने पर वहाँ से प्राप्त
सम्पत्ति में से भूमि और हीरे-जवाहरात बादशाह अकबर के हिस्से में आएगी तथा शेष
अन्य खजाना और मुद्राएँ राजा मान सिंह की सम्मति होगी। इस प्रकार की सम्पत्ति
प्राप्त करके ही राजा मान सिंह ने समृद्धशाली जयपुर राज्य का संचलन किया था। आमेर
के महलों के पीछे दिखाई देता है नाहरगढ़ का ऐतिहासिक किला, जहाँ अरबों रुपए
की सम्पत्ति ज़मीन में गड़ी होने की संभावना और आशंका व्यक्त की जाती है।
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